Saturday, March 26, 2011

मैं और हम ..

यूं तो रोज़ जीता ही हूँ 'मैं' ,
पर अगर 'हम' साथ जीते तो क्या होता !
यूं तो रोज़ मुस्कुराता ही हूँ 'मैं' ,
पर अगर 'हम' साथ हस्ते तो क्या होता !
यूं तो रोज़ गुनगुनाता ही हूँ 'मैं' ,
पर अगर 'हम' साथ गाते तो क्या होता !
क्यों अब 'मैं' से ही काम नहीं चलता ,
अब लगता है की 'मैं' अगर 'हम' होते तो क्या होता !
यूं तो सुख दुःख अकेले ही थे मेरे ,
पर अगर 'हम' बाँट लेते तो क्या होता !
समय की धारा में कश्ती चला रहा हूँ 'मैं' ,
पर अगर 'हम' साथ होते तो क्या होता !
पर भूल गया हूँ
कि,
'हम' बनाने के लिए 'तुम' भी तो कहीं होगे,
अगर 'तुम' कहीं मिल जाते तो क्या होता . 

2 comments:

thnx for this..