Saturday, November 21, 2009

कहाँ गया बचपन ..?

कुछ बदल सा गया अब बचपन
हो गया है इसका आधुनिकरण,
चाँद तो आज भी आता है
पर क्यों नही कोई देखता,
बारिश तो आज भी होती है
पर क्यों नही कोई नहाता,
बुडिया का बाल आज भी बिकता है
पर क्यों नही कोई खरीदता,
क्यों नही कोई बचपन अब
दादी नानी की कहानी सुनता,
जकड गया है बचपन इस आधुनिकता में
घुट कर रह गया है बचपन
विचारोहीन मानसिकता में,
कुछ पल तो जीने दो उन्हें अपना जीवन
मत छीनो उनके दो पल....
दे दो उन्हें उनका बचपन

Friday, September 4, 2009

वाह !क्या हैं ये जीवन

वाह !क्या हैं ये जीवन
निरंतर चलती धारा का है ये प्रीतम
सूखे खेत की दरार है कभी
कभी है सूखा कुआ,
कभी अपने जलते घरों से
का उठता हुआ धुंआ ,
पर..
कभी ठंडी ओस की बूँद है
कभी है ये शीतल हवा,
सिर्फ़ एक मुस्कान ही काफी है
ममता है यही, यही है दवा,
हे प्राणी! मत कर चिंता
अगर आएँगे बाढ से दुःख
तो ज़रूर मिलेंगे सागर से सुख,
क्यूंकि जीवन है सुख दुःख का संगम

निरंतर चलती धारा का है ये प्रीतम

वाह !क्या हैं ये जीवन..........





Tuesday, August 25, 2009

कुछ पहली पंक्तियाँ...

किसी से कदम मिलाने की चाह में
लिख रहा हूँ कुछ पंक्तियाँ,
जीवन को व्यथा सुनाने की चाह में
लिख रहा हूँ कुछ पंक्तियाँ,
कैसे चीरू इस फौलादी झूठ को,
कैसे लडू इस कड़वे सच से॥
इस सबसे सामना करने की,
ढूँढ रहा हूँ कुछ युक्तियाँ॥
सार्थक हो जाए जीवन
लिख रहा हू कुछ पंक्तियाँ .....