Tuesday, May 25, 2010

किसान हल उठाए या बन्दूक


भारत कृषिप्रधान देश
किसान है इसका सर्वेश
वो बाँझ मिटटी से भी लाता अन्न
भरता पेट 
देश का, तर हो जाता सबका मन
तब सब कहते थे,
की जन जन के हो तुम्ही पालनहार
तुमने अपने हल से देखो कैसा किया चमत्कार
पर अब लगता है कि
भारत कृषिप्रधान देश था ,
किसान इसका सर्वेश था
जमीन हडपी गयी वो किसपे बोयेगा
सालो से भूखा वो कैसे सोयेगा
सत्ता कि चक्की में पिस गया
बोना था दाना मिटटी में, खुद ही मिटटी हो गया
घनन घनन कहने से अब तो पानी भी नहीं गिरता
कब तक आस रखे वो खुद ही गिर गया
अपना अस्तित्व बचाने का नहीं मिला कोई हल
तो छोड़ दिया अन्न उगाने वाला हल
सोचा,
बन्दूक की नोंक पर शायद कुछ कर लेगा
पर बाहुबली के आगे वो कहा टिकेगा
अब देखना ये है शायद अब बन्दूक से दाना उगेगा
किसान तो किसान है, हल के बिना भी कब तक जियेगा

Monday, May 24, 2010

कुछ अमीरों की भूख .........

हैं कुछ ऐसे अमीर जिन्हें
कितना भी मिले कम है,
बस एक ही रट है
मुझे और चाहिए, मुझे और चाहिए,
रुपयों की चर्बी चढ़ गयी है
फिर भी आँखें नम है
बस एक ही रट है
मुझे और चाहिए, मुझे और चाहिए,
दाने को तरस रहा है गरीब
पर इन्हें अगर मिले दो चम्मच भी कम,
इसका भी इन्हें गम है
बस एक ही रट है
मुझे और चाहिए, मुझे और चाहिए,
दुःख तो तब होता जब
देश ही होता है इनका निशाना
खोखला कर दिया पर आँखों में नहीं शर्म है
बस एक ही रट है
मुझे और चाहिए, मुझे और चाहिए