Friday, December 5, 2014

पुरानी यादें



राज को जॉब करते हुए 7 साल हो चुके हैं , शादी भी हो गयी है। आज इतने सालो के बाद उसका अचानक मन कर गया कॉलेज जाने का, और वो भी अपनी बीवी के साथ ।

शायद कुछ पुरानी बात बताना चाहता हो अपनी बीवी से । फिर क्या, रविवार के दिन निकाली अपनी कार , और चल पड़ा कॉलेज को।

और कॉलेज पहुंच कर उसको ना जाने क्या हुआ, वो ख़ुशी के मारे भावुक होकर , जैसे अपने हर एक-एक राज़ अपनी बीवी को बताने लगा।

कॉलेज टाइम की वो आवारा मस्ती, क्लास बंक, कैंटीन की गपशप और दोस्तों की यारियां, की बातें करते हुए 2 घंटे पहले ही बीत चुके थे। उसकी बीवी भी उसके अतीत को बड़े मज़े लेकर सुन रही थी।

रविवार को कॉलेज की खाली गलियों में उन दोनों के ही ठहाके सुनाई दे रहे थे।

फिर अचानक राज रुका, और उसने प्रिया के बारे में अपनी बीवी को बताया।
कैसे वो पागलो की तरह उसके पीछे घूमता था, और प्रिया उसको भाव ही नहीं देती थी।

एक बार तो हद्द ही कर दी राज ने, प्रिया उस दिन क्लास नहीं आई थी , और राज ने उसकी attendence  पे "यस सर" बोल दिया। फिर क्या , उस दिन से जैसे विजय ध्वज लहरा दिया हो राज ने।

सभी दोस्तों की नज़र में वो दोनों "Couple " ही थे, वो दोनों माने या ना माने।

राज ये सब बता तो रहा था, पर अपनी बीवी के चेहरे के हाव भाव भी देख रहा था।

जब राज ने अपने सारे राज़ के खुलासे कर दिए, और जब वो एक खुली किताब बन चुका था, तब उसने हल्की सी मुस्कान के साथ अपनी बीवी से कहा - " चलो प्रिया ! अब घर चलते हैं "

और फिर, दोनों हाथ में हाथ डाले , कार की ओर चल पड़े।

Wednesday, October 22, 2014

दूर वाली दिवाली

इस बार की ये पहली दिवाली है, जिसमे साथ में, ना ही कोई परिवार का सदस्य, ना ही कोई निकट सम्बन्धी घनिष्ठ हैं। और उपर से देश भी नया । कहने की बात सिर्फ ये है कि इस दिवाली अकेला हूँ मैं ।

वैसे काफी तादात में यहाँ लोग दिवाली मानते है, पर जैसे मैं मनाता आ रहा हूँ , वो याद आता है आज।

धनतेरस के दिन घर की साफ़ सफाई के बाद बारी आती थी शाम को खरीददारी करने की। इस दिन कुछ नया आभूषण या बर्तन खरीदना होता था। यहाँ मुझे ऐसा बर्तन खरीदने का प्रचलन नहीं दिखाई दिया, शायद सबकी पसंद आभूषण ही है|

फिर बारी आती थी, गणेश-लक्ष्मी जी और हनुमान जी की मूर्ति खरीदने की। खील, लाई, बताशे, खिलोने, गट्टे, दीये, मोमबत्तियां और पूजा का सामान लेने में जो मज़ा ही अलग है। कुछ न कुछ तो मोल भाव करना ही होता था।

यहाँ तो शायद ऐसे खरीदारी का प्रचलन ही नहीं है।

हाँ, यहाँ के लोग भी उतनी ही हर्ष से पटाखे फोड़ते है,जैसे की अपने यहाँ। कल रात 12 बजते ही, आतिशबाजी का कारवां शुरू हो गया |

वैसे सिर्फ ये पंक्तियाँ ही काफी है, मेरी मनोदशा बयान करने को-

" इस बार मैंने दिए भी लिए है,
इस बार मिठाई भीे ली है
कोशिश है कि, सोहार्द्य से मनाउ,
पर इस बार दिवाली अकेली ही हैं "

दूर ही सही, दिवाली की शुभकामनाएं तो कही से भी दी जा सकती हैं।

शुभ दिवाली - सुरक्षित दिवाली