Friday, September 4, 2009

वाह !क्या हैं ये जीवन

वाह !क्या हैं ये जीवन
निरंतर चलती धारा का है ये प्रीतम
सूखे खेत की दरार है कभी
कभी है सूखा कुआ,
कभी अपने जलते घरों से
का उठता हुआ धुंआ ,
पर..
कभी ठंडी ओस की बूँद है
कभी है ये शीतल हवा,
सिर्फ़ एक मुस्कान ही काफी है
ममता है यही, यही है दवा,
हे प्राणी! मत कर चिंता
अगर आएँगे बाढ से दुःख
तो ज़रूर मिलेंगे सागर से सुख,
क्यूंकि जीवन है सुख दुःख का संगम

निरंतर चलती धारा का है ये प्रीतम

वाह !क्या हैं ये जीवन..........





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