Wednesday, October 22, 2014

दूर वाली दिवाली

इस बार की ये पहली दिवाली है, जिसमे साथ में, ना ही कोई परिवार का सदस्य, ना ही कोई निकट सम्बन्धी घनिष्ठ हैं। और उपर से देश भी नया । कहने की बात सिर्फ ये है कि इस दिवाली अकेला हूँ मैं ।

वैसे काफी तादात में यहाँ लोग दिवाली मानते है, पर जैसे मैं मनाता आ रहा हूँ , वो याद आता है आज।

धनतेरस के दिन घर की साफ़ सफाई के बाद बारी आती थी शाम को खरीददारी करने की। इस दिन कुछ नया आभूषण या बर्तन खरीदना होता था। यहाँ मुझे ऐसा बर्तन खरीदने का प्रचलन नहीं दिखाई दिया, शायद सबकी पसंद आभूषण ही है|

फिर बारी आती थी, गणेश-लक्ष्मी जी और हनुमान जी की मूर्ति खरीदने की। खील, लाई, बताशे, खिलोने, गट्टे, दीये, मोमबत्तियां और पूजा का सामान लेने में जो मज़ा ही अलग है। कुछ न कुछ तो मोल भाव करना ही होता था।

यहाँ तो शायद ऐसे खरीदारी का प्रचलन ही नहीं है।

हाँ, यहाँ के लोग भी उतनी ही हर्ष से पटाखे फोड़ते है,जैसे की अपने यहाँ। कल रात 12 बजते ही, आतिशबाजी का कारवां शुरू हो गया |

वैसे सिर्फ ये पंक्तियाँ ही काफी है, मेरी मनोदशा बयान करने को-

" इस बार मैंने दिए भी लिए है,
इस बार मिठाई भीे ली है
कोशिश है कि, सोहार्द्य से मनाउ,
पर इस बार दिवाली अकेली ही हैं "

दूर ही सही, दिवाली की शुभकामनाएं तो कही से भी दी जा सकती हैं।

शुभ दिवाली - सुरक्षित दिवाली

2 comments:

thnx for this..